ये दौर-ए-शम्स-ओ-क़मर ये फ़रोग़-ए-इल्म-ओ-हुनर ज़मीन फिर भी तरसती है रौशनी के लिए
ये सोचो कैसी राहों से गुज़र कर मैं यहाँ पहुँचा
ये मत देखो मेरे दामन में उलझे ख़ार कितने हैं